Historical mounds of Haryana

                       हरियाणा के ऐतिहासिक टीले

  •  कर्ण का टीला - थानेसर के ऐतिहासिक किले से पश्चिम दक्षिण से लगभग 3 किलोमीटर दूर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के समीप के मिर्जापुर गांव की सीमा के अंतर्गत टीले हैं | इनमें से बड़ा और ऊंचा टीला राजा कर्ण का टीला के नाम से प्रसिद्ध है इसके पूर्व में लगभग 20 मीटर की दूरी पर एक छोटा टीला है जिसे मिर्जापुर का टीला कहा जाता है जिले की वर्तमान ऊंचाई 200 मीटर है तथा इसके मध्य भाग भी क्षतिग्रस्त नहीं हुए हैं इस टीले पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 1973 से 1995 तक उत्खनन कार्य करवाया गया उत्खनन में आधार ऐतिहासिक तथा पर भर्ती मध्य कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं परवर्ती हड़प्पा कालीन आवास के पश्चात यह टीला काफी समय तक विरान रहने के बाद इसी सन की प्रारंभिक शताब्दीयों  के पुन : आबाद हुआ जिसके विस्तृत अवशेष राजा कर्ण के किले पर मिले हैं ! इस काल की अनेक दीवारों के अवशेषों के साथ कच्ची ईंट एक के एक मकान में दो कमरे पाए गए हैं बड़े कमरे का बाप 6 * 3 मीटर है तथा इसमें अग्नि स्थल कूड़ा फेंकने का गट्टा भट्टी  तथा अनाज संग्रह करने के बर्तनों के अवशेष मिले हैं बड़े कमरे के समांतर दक्षिणी पूर्व में 125 मीटर की दूरी पर एक अन्य दीवार के अवशेष मिले हैं जो छोटे कमरे तक पहुंचती हैं उन्हें अन्य दीवारों के आसन की अवशेष भी उत्खनित क्षेत्र में मिले हैं जो दो विभिन्न उपकालो  के हैं ! यद्यपि इन में प्रयुक्त गीतों का निश्चित माप  नहीं हो पाया किंतु 40 गुना 20 गुना 10 सैंटीमीटर आकार की ईटो का प्रयोग भी मिलता है !  यहां से प्राप्तत मृदभांड लाल रंग के हैं इन पर हल्के काले रंग की ज्यामितिक और रेखीय  के नमूने सुंदरता से बने   हैँ | 

  •  दौलतपुर का टीला - कुरुक्षेत्र जिले में थानेसर से पूर्व में लगभग 15 सो किलोमीटर की दूरी पर दौलतपुर गांव के समीप दृष्दवती  से निकलने एक नाले के किनारे यह प्राचीन टीला है ! कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा करवाए गए  उत्खनन के आधार पर यहां की सामग्री को निबंध कालों में बांटा जा सकता है | 

  1.  प्रथम काल (1800से 1500 ई. पू ) -- यहां मिले प्राचीनतम आवास के अवशेषों परवर्ती हड़प्पा संस्कृति काल के हैं इस काल के विशिष्ट मृदभांड मजबूत तथा लाल रंग के हैं जिन पर काले रंग के ज्यामितिक  तथा रेखीय चित्र बनाए गए हैं ! भाइयों सत्य का निबंध कोटि का उपचार व मृदभांडों  के विकसित रूप इनके साधे ढंग की अलंकृत संस्कृति की दशा को दर्शाता है आभूषण के रूप में फ्रांस की चूड़ियां पक्की मिट्टी और बहुमूल्य प्रस्तर निर्मित मनके काम में लाते थे | 

  1.  द्वितीय काल ( 1100 से 500 ई .पू ) -- इस काल के अवशेषों में चित्रित धूसर मृदभांड विशिष्ट हे जो आर्यों से संबंधित माने जाते हैं इस काल के अन्य अवशेषों में ताम्र - निर्मित अंजन शलाका असिथ निर्मित पीने नाक व घिसावट  काम में लाए जाने वाले प्रश्न सम्मिलित हैं ! एक अलंकृत स्त्री की आकृति भी इस काल में दर्शाती हैं | 

  1.  तृतीय काल ( 500 ई. पू से 5वी  शती ) -- इस काल में अवशेषों को मुख्य रूप से दो उठ कालों में बांटा जा सकता है प्रथम उप काल में ईस्वी पूर्व भी के कुछ विशिष्ट मृदभांड मिलते हैं द्वितीय उप काल में मकान यद्यपि कच्ची ईंटों के हैं किंतु निश्चित योजना के अनुसार बने हैं इस ट्विटर काल में शक कुषाण कालीन लाल पुलिस वाले विशिष्ट मृदभांड भी मिलते हैं मृदभांड पर नदीपाद पत्ते एवं माला के नमूने के धागे बने हुए हैं पक्की मिट्टी के खिलौने बैल की आकृतियां तथा पहिए के साथ पशु शीशे की चूड़ियां मन के नंबर या संगीत बनी कानों की बालियां एवं हाथी दांत की कंगी आदि यहां मिले हैं यहां पक्की मिट्टी की मुहावरे तथा छत पर जिन पर ब्राही लिपि में अभिलेख मिलते हैं इनमें से एक थप्पड़ पर चौथी पांचवी सदी की ब्राह्मी लिपि में स्त्नेशवस्य  लिखा  हैँ  | 

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