हरियाणा के ऐतिहासिक टीले

                    हरियाणा के ऐतिहासिक टीले


 हरियाणा प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक चिंतन का केंद्र रहा है पुरातत्विक 4 * 5 दृष्टि से भी हरियाणा संपन्न रहा है पुरातत्व विधियों एवं इतिहासकारों ने ऐसे अनेक स्थल खोज निकालने हैं जिनसे इस प्रदेश की समृद्ध संस्कृति का पता चलता है गाना में मिले कुछ ऐतिहासिक टीलों स्थानों का वर्णन इस प्रकार है

  1.  सीसवाल- हिसार से 26 किलोमीटर पश्चिम चेतांग नहर के पश्चिम के किनारे  पर सीसवाल स्थित है यहां के ऐतिहासिक टीले का क्षेत्रफल 47100 वर्ग किलोमीटर एवं ऊंचाई 25 मीटर है यहां से प्राप्त मृदभांडों को दो मुख्य संस्कृतिक कालों में बांटा गया है प्रथम काल के मृदभांड पूर्व हड़प्पा कालीन तथा कालीबंगा कालीबंगा से प्राप्त मृदभांडों के समान है ! चौक में हाथों से निर्मित यह मृदभांड दो प्रकार के हैं  लाल व धूसर इन पर विभिन्न प्रकार की रेखीय व ज्यामितीय चित्रकारी की गई है कुछ पात्र अंदर से उत्तीर्ण हैं तथा कुछ बाहर से   खुरदरे  यहां से पात्रों मेंंंं प्रमुख है-- लोटा नोकदार    कंधेवाल व  गोलाकार कलश अंडाकार संग्रह भांड चपटे किनारे वाले कटोरे समीठ थाली कटोरे तनेदार का आदि | 

  1.  बालू- बालू कैथल से 17 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है यहां पर स्थित टीले का माप 210 गुना 180 मीटर  ! इस किले के  उत्खनन का कार्य कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग ने 1978-79 आरंभ किया यह अभी तक पता नहीं चला कि बालू  का जनजीवन किस नदी के जल पर निर्भर था यहां की गई प्रथम सत्र की खुदाई मैं तेज संस्कृतिक स्तरों  का पता चलता है प्रथम काल में पूर्व हड़प्पा कालीन मृदभांड मिले हैं जो उत्तर सीसवाल मृदभांडों  से मेले खाते हैं यहां मिले लाल धूसरे व काले मृदभांडों  में जार कलश  कटोरे कप  चूड़ियां तथा कच्ची ईंट ए प्रमुख हैं ! पात्रो  पर आड़ी तिरछी रेखाओं की  त्रिकोणीय चित्रकारी है ! द्वितीय काल की खुदाई में पूर्व हड़प्पा मृदभांडों के साथ हड़प्पा कालीन मृदभांड भी मिले हैं यहां से प्राप्त पत्रों में जार मर्तबान कलश स्पीट थाली.  पशु  मूर्तिया चड़िया  खिलोने मनके पहिए  गोतिया छेनी  व  चाकू  प्रमुख है ! 

  1.  राखीगढ़ी- राखीगढ़ी जि हिसार में चेतांग नदी दाहिने किना पर स्थित है ! हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की भाँती  दो टीलों वाला  यह स्थल शायद भारत का सबसे विशाल टीला है इसका क्षेत्रफल 6 से 8 किलोमीटर केेेेे मध्य है तथा इसकी ऊंचाई 17 मीटर है यहां से मुख्यत:विकसित हड़प्पाा मृदभांड  तथा सीसवाल परंपरा के भी कुछ मृदभांड मिले हैं हड़प्पा कालीन  मृदभांडों मैं मर्तबानर, बीकर , कलश , स्पीट थाली , कप तथा अन्य  पूरा वस्तुओं me अर्ध  मूलयवान पथर,  मिट्टी व  लकड़ी  के मनके   चूड़ियाँ , दलेड़,  तथा   हड़प्पा  लिपि    मे  लिखी  सेलखड़ी  व मुहरें उल्लेखनीय  है  ! 

  1.  मिताथल- मिताथल जिला भिवानी का मुख्यपूर्ण गांव है जहां पर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की भांति दो  टीले पाए गए हैं ! एक पूर्वी टीला तथा दूसरा पश्चिमी टीला पूर्वी टीले क्षेत्रफल 15310 वर्ग मीटर तथा ऊंचाई 5 मीटर है पश्चिमी टीले का क्षेत्रफल 41210 वर्ग मीटर तथा ऊंचाई दो 3 मीटर है यहां की गई खुदाई में मुख्य रूप से तीन सांस्कृतिक स्तरों का पता चलता है यहां से प्राप्त  पात्रो   मे बीकर  थाली,  मर्तबान.,मनके  .चूड़ी  . पत्थर  . की गेंद.  हाथी दाँत  की पिन . खिलौने .तांबे की चूड़ियाँ  तथा अंगूठा प्रमुख है ! 

  1.  बनावली- बनावली फतेहबाद से 15 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में सरस्वती नदी के किनारे स्थित है इस टीले का क्षेत्रफल 2,50,000 वर्ग मीटर है इसके 3 स्तरों में विभाजित किया गया है प्रथम सत्र से पूर्व हड़प्पा कालीन मृदभांड प्राप्त हुए हैं जिनमें कटोरे मर्तबान स्पीड थाली हड्डी तथा पत्थर की बनी वस्तुएं सेलखड़ी सोने के मनके सीप तथा तांबे की चूड़ियां प्रमुख हैं द्वितीय सत्र कालीन है यह नगर कच्ची ईंटों से बनी आयताकार प्राचीर से घिरा था तथा  इसके माध्यम में स्थित 6 मीटर मोटी दीवार इसे दो भागों में बांटती थी इस मध्य विभजित दीवार के बीच एक द्वार था जिसे लोग एक दूसरे भाग में आ जा सकते थे किस दीवार के निकट एक वर्गाकार सरंचना भी मिली है  इस प्रकार की नगर योजना गुजरात के सर कोटडा से पहले ही प्राप्त हो चुकी है यहां से चित्रित मर्तबान बिक्कर बेसिन हथे  वाले कप तांबा व कांस्य का भाला छेनियाँ पुखराज  सेलखड़ी कथा मिट्टी की मोहर प्रमुख हैं इन पर मयूर पीपल केले का पति वृक्ष हिरण मछली तथा पुष्प की चित्रकारी की गई है यहां से मिट्टी के बने हल  प्राप्त हुए हैं तृतीय सत्र से उत्तर  हड़प्पा कालीन पत्र में पुरातत्व प्राप्त हुए हैं ! 

  1.  हर्ष का टीला - हर्ष का टीला मुख्य रूप से हर्ष के किले के रूप में जाना जाता है यह टीला थानेसर  शहर के पश्चिमी व उत्तर में स्थित है लगभग 1 किलोमीटर लंबा तथा 750 मीटर चौड़ा यह दिल आप अंतर 18 फुट ऊंचा है मुख्य रूप से थानेसर शहर भी एक टीले पर स्थित है जिसमें नए व पुराने मकान बने हैं पुराने मकानों में आज भी कहीं-कहीं लाखोरी ईटे  थे देखने को मिलती हैं हर्ष के टीले के पश्चिम में एक भारी टीला है वर्तमान में यह गांव बहारी टीलों के बीच में स्थित है टीले का सबसे ऊंचा स्थान लगभग 26 मीटर है इस टीले के पश्चिम में शेखचिल्ली का मकबरा है लगभग आयताकार रूप से इस टीले की किलेबंदी से पता चलता है कि इसके उत्तरी पश्चिमी किनारे से स्टीले से ऊंचे हैं टीले की पश्चिमी परिधि मैं बाहरी गांव की और कुछ खाली स्थान है जो किले के मुख्य दरवाजे को प्रदर्शित करता है यह स्थान टीले शेष  स्थानों से नीचा है अनुमान है कि इस दरवाजे से कोई मुख्य सड़क भी रही होगी टीले के उत्तरी छोर पर भी कुछ ईटों के अवशेष हैं जिन्हें टीले की किलेबंदी माना जाता है इन्हें शेखचिल्ली के मकबरे के काल अथवा उसके कुछ पहले अथवा बाद का माना गया है खुदाई से प्राप्त मृदभांड ईटो के  अतिरिक्त वैदिक काल से लेकर उत्तर मुगल काल तक के अवशेष मिले हैं थानेसर से पक्की मिट्टी के टूटे हुए अवशेष मिले हैं जो चोथी पांचवी शताब्दी से आठवी वह बाहर वीं शताब्दी के बीच के बताए गए हैं पिछले कुछ सालों के दौरान शुंग काल की कुछ इंटे कुषाण काल के मृदभांड तथा गुप्त काल की कुछ पक्की मिट्टी की पट्टीकाए  मिली है भारत के प्रथम सर्वेयर जनरल एलेग्जेंडर कनिंघम नेभी थानेसर के निकट गुप्त काल की पक्की मिट्टी की कुछ पटकाई वह मिट्टी की ईंटों के चबूतरे का जिक्र किया हैँ  ! अपनी 1863-64 ईसवी की यात्रा की रिपोर्ट में कनिघम 1100 फिट के पुराने टूटे हुए किले के पूरब में एक टीले पर आधुनिक नगर तथा पश्चिमी टीले पर एक ओपन नगरिया बस्ती का वर्णन किया है इन तीनों टीलों की पूर्व पश्चिम में लंबाई 1 मील  तथा चौड़ाई 2000 फीट बताई गई है

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