हरियाणा के तीर्थ स्थल

                       कपिल कलायत तीर्थ कपिल                     कलायत, नरवाना } से कैथल जाने वाली सड़क पर प्राचीन नगर है । पौराणिक आख्यान के अनुसार इसका पुराना नाम कपिल तीर्थ है। ऐसी मान्यता है । कि यहां पर स्वयं भगवान शिव कपिल के रूप में विधमान है ।


  • रामरा रामहळद तीर्थ } जींद के समीप रामरा , हरियाणा का एक प्रख्यात तिर्थ - स्थल है। इसका प्राचीन नाम रामहदल है । बहुत आए श्रधालु इस तीर्थ पर माघ मास में पवनव्रत का अनुष्ठान करते हैं। 

  • सफीदों (सर्पदमन तीर्थ ) } जींद और सोनीपत के मध्य सफीदों एक प्राचीन पौराणिक नगर है । यहाँ सर्पदमन तीर्थ तथा महादेव जज का मंदिर तीर्थयात्रियों के आकषण का केंद्र है ।

  • आपया तीर्थ } यह पवित्र तीर्थ कैथल से 3 किलोमीटर की दूरी पर गांधड़ी नामक गाँव मे एक सरोवर के रूप में सुशोभित है । आपगा नामक पवित्र नदी कभी इसी स्थान से होकर बहती थी  यहाँ  श्रावण कृष्ण चतुर्दशी को एक विशाल मेला भरता है ।

  • व्यास स्थली तीर्थ } करनाल से 27 किलोमीटर पश्चिम में सुशोभित गांव बस्तलि का पौराणिक नाम व्यास स्थली है प्राचीनकाल में यह तीर्थ महाभारत के प्रणेता महामुनि व्यास के नाम से प्रसिद्ध था । पौराणिक कथा के अनुसार यहां व्यास जी के पुत्र शोक से सन्तप्त होकर शरीर त्यागने का मन्तव्य किया था । उस सयम देवताओं ने शोक सन्तप्त व्यास जी का धैय बंधाकर उन्हें आत्माहत्या करने से रोका था । तब से ऐसी मान्यता है कि इस तीर्थ की यात्रा करने से सहस्र गोदान का पुत्र फल मिलता है तथा उस तीर्थयात्री को कभी पुत्र वियोग की यातना नहीं सहनी पड़ती ।

  • काम्यक तीर्थ } कुरुक्षेत्र  के सात पवित्र वनों में से एक है काम्यक वन । यह सरस्वती के तट पर स्थित है । ज्योतिसर से पेहोवा जाने वाली सड़क के दक्षिण में लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर कामोघा गांव काम्यक का ही अपभ्रंश बताया जाता है यहाँ गांव के पश्चिमी में काम्यक तीर्थ है  । विश्वास किया जाता है । कि अपने प्रवास के समय पांडवों ने कुछ समय विश्राम किया था ।

  • हंस तीर्थ }  जींद से दो कोस पर इक्कस गांव में हंस तीर्थ है हिसे ढूढ़उ भी कहा जाता है । महाभारत युद्ध के अंत मे भयतीत दुर्योधन इस तीर्थ के जल में छिपा गया था । ढूढ़ने पर वह यहां मिला , फिर यहीं पर युद्ध करता हुआ भीमसेन द्वारा गदा प्रहार से मारा गया । हंस तीर्थ निकट ही कर्तशोच तीर्थ है ।, जिसे नरसिंह ढाब भी कहते है । भगवान नरसिंह ने हिरणकशिपु को मारकर यहां रक्त पूर्ण हाथ बारम्बार धोए थे। 

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