हरियाणा के तीर्थ स्थल
- कुरुक्षेत्र } जनमानस की मुमुक्षा को तृप्त करने के लिए हरियाणा की धर्म धरा पावन तीर्थ स्थल है , जिनमें सर्वाधिक महत्व है - कुरुक्षेत्र के वैदिक संस्कृति का पालन होने के कारण कुरुक्षेत्र को आदिकाल से ही परम् पवित्र माना जाता है शतपथ ब्राह्मण के अनुसार देवताओं कुरुक्षेत्र की पावन धरती और यज्ञाहुति दी थी । इसी कर्मभूमि पर भगवान कृष्ण ने गीता के अमर उपदेश से मोहग्रस्त अर्जुन के अज्ञान कि अर्गला को हटाकर उसे अपना कर्तव्यपालन करने के लिए उत्प्रेरित किया था । तभी से इसे धर्म धरा की संज्ञा से गौरवान्वित किया है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति का भव्य मेला है ।
- कपालमोचन } जगाधरी में विलासपुर के निकट प्रकृति की रमणीय गोदी में विराजमान कपालमोचन हरियाणा का एक पवित्र एवं प्राचीन तीर्थ स्थल है । कपालमोचन तीर्थ सब पापो से छुड़ानेवाला है । नरश्रेष्ठ वहाँ स्नान करके सब पापों से मुक्त हो जाता है । यह कार्तिक पूर्णिमा के दिन भरने वाले मेले में श्रद्धालु तीर्थयात्रियों की अपार भीड़ उमड़ पड़ती है । इस तीर्थ के संबंध में अनेक जनश्रुतियां प्रचलित है । कहा जाता कि जब ब्रह्मा सरस्वती को सत्ता रहे थे , तो शिवजी ने उसकी रक्षा करते हुए ब्रह्म का सिर काट डाला था। इसी कपालमोचन के पवित्र कुण्ड में स्नान करके शिव ब्रह्म - हत्या पाप से मुक्त हुए थे।
- पृथुदक तीर्थ } पृथुदक कुरुक्षेत्र से लगभग पच्चीस किलोमीटर पश्चिमी की ओर सरस्वती की और के तट पर शोभायमान है । सम्प्रति यह पौराणिक तीर्थ पव्हवा के नाम से प्रसिद्ध है । वेन के पुत्र राजा पृथु के इसी पवित्र तीर्थ पर अपने पिता का श्राद्ध अर्पित किया था । उन्ही के नाम पर इस तीर्थ को पृथु +उदक पृथुदक कहा जाने लगा। इस पवित्र तीर्थ की यात्रा श्री गुरुनानक देव जी की ने भी की थी । गुरु हर राय पेहवा की यात्रा करके थानेसर गए थे । श्री गुरु गोविन्दसिंह भी संवत 1766 में यहां पधारे थे । गुरु तेग बहादुर ने भी इस पवित्र तीर्थ के दर्शन किये थे । महाराजा रण्यजीतसिंह ने भी इस सुरम्य स्थान का दौरा किया था ।
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