हरियाणा के तीर्थ स्थल

                       हरियाणा के तीर्थ स्थल



  • ययाति तिर्थ } यह प्राचीन तीर्थ पेहवा के निकट है। इसी स्थान पर सरस्वती नदी के तट के निकट महाराज ययाति ने यज्ञ किये थे । यहां यात्री स्नान करके उन्हें पितरों की निमित्त धर्मिक अनुष्ठान करते है ,जिससे उन्हें अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है । 

  • केदार तीर्थ } केदार तीर्थ के निकट एक भव्य सरोवर रूप में विघमान है। 

  • वामनक तीर्थ } बरसाणा ( जींद ) नामक गाँव मे स्थित वामनक तीर्थ पुराण काल से प्रसिद्ध है। इसी पवित्र स्थान पर विष्णु भगवान वामन के रूप में अवतरित हुए थे । 

  • बद्रीपाचन तीर्थ } इस तीर्थ का दूसरा नाम वशिष्ठ प्राची भी है । यहा महार्षि वशिष्ठ का आश्रम था । फाल्गुन शुक्ल एकादशी को यहां रहकर व्रत रखने तथा देवपूजा करने से अमित फल मिलता है ।

  • स्थाणु तीर्थ } कुरुक्षेत्र के तीर्थो में त थानेसर के स्थाणु तीर्थ को आदि-तीर्थ की संज्ञा से अभिहित किया गया है। स्थाणु तीर्थ तथा विराजमान  स्थाणुविश्वर महादेव की महिमा पुराण प्रसिद्ध है । कहा जाता है कि स्थाणु श्वर के मंदिर में स्वयं ब्रह्मा जी ने स्थाणु लिंग की स्थपना की थी । 

  • झिर तीर्थ } झिर तीर्थ फिरोजपुर झिरका दिल्ली से 114 तथा गरुग्राम से 82 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । महाशिवरात्रि और स्रवण मास में विशेषकर सोमवार को यहां पर्व सा लगता है। 

  • मनसा देवी तीर्थ } मनसा देवी का मंदिर चंडीगढ़ से कुछ दूर जिला अम्बाला के मनीमाजरा गांव के निकट शिवालिक पर्वत श्रखला की मनोरम गोद मे विधमान है। मुसलमान कारीगरों द्वारा निर्मित होने के कारण इस मंदिर में मुस्लिम शैली वास्तुकला के दर्शन होते है । क्योंकि मन्दिर का शिखर मस्जिदों की भांति गुम्बदमय है। नवरात्रों की अष्टमी को यहां विशाल मेला जुड़ता है ।

  • शीतला माता तीर्थ } हरियाणा का सबसे प्रख्यात मेला शीतला माता के धाम गरुग्राम में संपन्न होता है। शीतला एक संक्रामक रोग है । और प्रायः बच्चों को होता है । आरंभ से लेकर अंत तक इसका शीतला उपचार होता है ।घर के अंदर और बाहर पानी छिड़का जाता है ।इसी शीतोपचार के करण इस रोग का शमन करने वाली देवी माता को शीतला माता कहा जाता है। शीतला माता का वाहन गधा तथा कुम्हार को देवी का भक्त एवं प्रिय पात्र समझा जाता है। निम की टहनी से रोगी को झाड़ता है। जिससे माता प्रसन्न होती है। इस माता का प्रमुख धाम गरुग्राम में होने के करण इसे गरुग्राम वाली माता भी कहा जाता है । 

  • ढोसी तीर्थ } ढोसी तीर्थ नारनौल से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर अरावली की पर्वत की सुरम्य ढोसी श्रखला पर स्थित है । प्राचीनकाल में यह च्यवन ऋषि का आश्रम था , यही उन्होंने कठोर तपस्या की थी ।  

  • अग्रोहा तीर्थ } यहां महाराजा अग्रसेन का रमणीक मन्दिर है जिसमे कथा कीर्तन का कार्यक्रम विधिवत चलता रहता है । यहां अग्रसेन जयंती के अवसर पर आशिवन शुक्ला प्रथम नवरात्रि को विशाल मेला भरता है। 

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