हरियाणा के तीज त्योहार


                         हरियाणा के तीज त्योहार 






  v  हरियाणा भारत की विशाल संस्क्रति का मूल अंचल है | यहाँ त्योहार इसके पूर्व ,पश्चिम, दक्षिण तथा उत्तर के राज्यो मे कुछ सथानीय भेदों के साथ मानए जाते है | इन तयोहारों क समाजिक , आर्थिक महतव तो है हि , किन्तु जन मनोरंजन इनका प्राण है | यहां विकरम संवत या देसि महिनों के अनुसार प्रमुख तिज- तयोहारों पर प्रकाश डाला ज रहा है |






  v  धुलैंढी – धुलैंढी -का तयोहार ज्ञैत्र कृषण प्रतिदिन पड़वा या एकम के दिन हषोंललास के साथ मनाया जाता है | स्थानीय परम्परा में इसे ‘धूलेडी’ धूलैडा छारेडी आदि नामों से जाना जाता है | इसे  धूलिका पर्व तथा होली भी कहते है | होली से अलग स्पष्ट करने के लिए इसे फाग या फाग खेलना या रंग कहते है विद्धान लोग धुलिहरी से  धुलैंढी की व्युत्पत्ति मानते है महर्षि वात्स्यायन ने अपने कामसूत्र में होलाक नाम से इस उत्सव का उलेखित किया है |







  v  बासाहेड़ा / शीतला – बंगाल में माघ शुल्क षष्ठी, गुजरात में श्रवण कृष्ण अष्टमी तथा हरियाणा , राजस्थान पंजाब और दिल्ली क्षेत्र में चेत्र कृष्ण सप्तमी या अष्टमी को इसे मनाया जाता है हरियाणा में इसे सिली सौंत सिली आठैं कहते है | इस दिन शीतल या बासी भोजन किया जाता है इलिए इस त्योहार को बासाहेड़ा ब्सोड़ा , बसोरा या बसिआरा नाम दिया गया है | इस अवसर पर कई स्थानों पर मेलों का भी आयोजन होता है | शीतला सप्तमी के अवसर अनेक मेले लगते है कालवन ( जिला फतेहाबाद ) और रोहतक के मेले इस संदर्भ में अति मान्यता प्राप्त है | ये स्थान टोहाना के नजदीक है | यहाँ बच्चों का मुण्डन सन्सकार किया जाता है|



  v  चैत चौदस-पेहोवा – पेहवा में चैत मास की चौदस (शुल्क पक्ष) को स्थानीय मेला लगता है |

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ